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सूक्ति-सुधा
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( २० ) श्रपडि चक्कस्स जओ, होउ, सया संघ चक्केस्स |
न०, ५
टीका - जिनके चक्र को शासन व्यवस्था को और पवित्र सिद्धान्तो को कोई काट नही सकता है, कोई चल-विचल नही कर सकता है । ऐसे चक्र शील और निरन्तर प्रगति शील - श्री सघ की सदा जय हो, नित्य विजय हो ।
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( २१ )
भदं सील पडागुसियस्स, तव नियम तुरय जुत्तस्स ॥ न०, ६
टीका - चतुर्विध श्री सघ एक अनुपम रथ के समान है, जिसके ऊपर शील रत्न रूप सुन्दर पताका ध्वजा फहरा रही है । जिसमें तप, नियम, सयम रूप सुन्दर घोडे जुते हुए है । ऐसा श्री सघ - रूप यह सर्वोत्तम रथ हमारे लिये आध्यात्मिक कल्याण करने वाला हो