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[प्रार्थना-मङ्गल-सूत्र (११) भई सुरासुर नमंसियस, भई धुयरयस्स।
न०,३ टीका--जिन देवाधिदेव चरम तीर्थंकर की सुर और असुर सभी . देवी देवताओ ने, इन्द्रों और महेन्द्रों ने वन्दना की है, भक्ति की है, और जिन्होने सभी कर्मो को क्षय कर दिया है, जिनके कर्म रूपी रज शेष नही रह गई है, ऐसे चौबीसवे तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी कल्याण रूप हो, आपका सदैव जय जय कार हो।
जगणाहो जग वधू, जयइ जगप्पियाम्हो भयवं ।
न०,१ - .. टीका--भगवान महावीर स्वामी संसार मे अनाथ रूप से घूमने वाले जीवो को मोक्ष मार्ग के दर्शक होने से नाथ समान है। ससार के दु खो से पीड़ित भब्य जीवो' को मोक्ष-सुख देने वाले होने से ये जगत-बन्धु है । ससार में अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, निष्परिग्रह व्रत और अनासक्ति आदि रूप धर्म-मार्ग प्रचारित कर सर्व-शक्तिमान् दीर्घ तपस्वी महावीर स्वामी ने ससारी जीवो की ससार समुद्र से रक्षा की. है, अतएव ये ससार के लिए माता पिता के समान है, ऐसे जगतपति महावीर स्वामी की जय हो ।... ......
जयइ जंग-जीव-जोणी-विगणओ,
जग गुरू, जगाणदो।
. टीका-जिन शासन के चरम-तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जय हो । प्रभु महावीर संसार के सभी जीवो को मोक्ष-मार्ग बताने