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[ व्याख्या कोष
३२--स्मृति ___ पाचो इन्दियो और मन द्वारा जाने हुए एवं अनुभव किये हुए पदार्थ का याद आ जाना ही "स्मृति कहलाती है । स्मृति मतिज्ञान का ही भेद है।" ३३--स्याद्वाद लिया
एकान्त एक दृष्टि कोण से ही पदार्थो का विवेचन, ज्ञान और अनुभव नहीं करते हुए अनेक दृष्टि कोणो से पदार्थों का, और व्यो का विवेचन करना, उनका ज्ञान करना और उनका अनुभव करना ही "स्याद्वाद" है।
स्याद्वाद को अपेक्षा वाद, अनेकान्त वाद भी कहते है। इसके सात भागे "अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य" इन तीन शब्दो के आधार से बनते है। ज्ञान और नय का सम्मिलित नाम ही स्याद्वाद है । स्याद्वाद के सबध में विशेष इसी पुस्तक की भूमिका से समझना चाहिये ।
१-क्षेत्र
क्षेत्र के दो भेद है:-१ दव्य क्षेत्र और २ भाव क्षेत्र ।
( १ ) भौतिक पदार्थों और जड द्रव्यो की पृष्ठ-भूमि को स्याल में रखकर कहा जाने वाला विवेचन प्रणालि "द्रव्य-क्षेत्र" से सबंधित मानी जाती है।
(२) आत्मा से सवधित पृष्ठ भूमि को ख्याल मे रखकर कही जाने ___ वाली विवेचन प्रणाली "भाव-क्षेत्र" के नाम से वोली जाती है।
१-त्रस
जो जीव भूख, प्यास, सर्दी, गरमी आदि से अपनी रक्षा करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता हो, वह बस कहलाता है ।।
प्रस के ४ भेद है --१ दो इन्द्रिय जीव-२ तीन इन्द्रिय जीव, ३ चार इन्द्रिय जीव और ४ पाच इन्द्रिय जीव !