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युग- कर्तव्य और उपसंहार
आज जैन समाज में सैकड़ों करोड़पति और हजारो लखपति हैं, उनका नैतिक कर्तव्य है कि ये सज्जन भाजके युग में जैनधर्म, जैन दर्शन जैन - साहित्य
और जैन संस्कृति के प्रचार के लिये, बिकास के लिये और कल्याण के लिये
जैन साहित्य के प्रकाशन की व्यवस्था विपुल मात्रा में करे । यही युग कर्तव्य है ।
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आनेवाला युग साहित्य का प्रचार और साहित्य प्रकाशन ही चाहेगा, और इसी कार्य द्वारा ही जैन-दर्शन टिक सकेगा ।
गुणों के प्रतीक, भगलमय वीतराग देव से माज मक्षय तृतीया के शुभ दिवस पर यही पुनीत प्रार्थना है कि अहिंसा प्रधान आचार द्वारा और स्याद्वाद प्रधान विचारो द्वारा विश्व में शांति की परिपूर्ण स्थापना हो. एव अखंड मानवता "सत्य, शिवं, सुन्दर" की ओर प्रशस्त प्रगति करे ।
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, सघवी कुटीर, . छोटी सादडी; अक्षय तृतीया,
विक्रम. स. २००९
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विनीत रतनलाल संघवी