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मे, अध्ययन में, अध्यापन में, और विविध विषयो में उच्च से उच्च कटि
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के ग्रथो का निर्माण करने मे ही व्यतीत हुआ है। खास तौर पर जैनसाओ का वहुत बडा भाग प्रत्येक समय इस कार्य मे सलग्न रहा है । इसलिये अध्यात्म, दर्शन, वैद्यक, ज्योतिष, मंत्र-तंत्र, सगीत, सामद्रिक, लाक्ष
णिक शास्त्र भाषा-शास्त्र, छद, काव्य, नाटक, चपू, पुराण, अलकार, कथा,
कला, स्थापत्य कला, गणित, नीति, जीवन चारित्र, तर्क - शास्त्र, "तात्विक शस्त्र, आचार-शास्न, एव सर्वदर्शन सम्बन्धी विविध और रोचक ग्रंथो का हजारो की सख्या मे निर्माण हुआ है ।
प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रश, तामिल, तेलगु, कसड़, गुजराती, हिन्दी, -महाराष्ट्रीय एव इतर भारतीय और विदेशी भाषाओ मे भी जैन ग्रंथो का निर्माण हुआ है ।
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जैन - साहित्य का निर्माण अविछिन्न धारा के साथ मौलिकता पूर्वक विपुल मात्रा मे प्रत्येक समय होता रहा है और इसी लिये जैन-वाड्मय मे "विविध भाषाओ का इतिहास,” “लिपियो का इतिहास," भारतीय साहित्य का इति - हास” “भारतीय संस्कृति का इतिहास” “भारतीय राजनीतिक इतिहास, ' एव “व्यक्तिगत जीवन चरित्र" आदि विभिन्न इतिहासों की प्रामाणिक सामग्री भरी पडी है । जिसका अनुसधान करने पर भारतीय संस्कृति पर उज्ज्वल एव प्रमाण, पूर्ण प्रकाश पड सकता है ।
जैन साहित्य के हजारो ग्रंथो के विनष्ट हो जाने के बावजूद भी आज भी अप्रकाशित ग्रथों की संख्या हजारो तक पहुँच जाती है। जोकि विविध महारों मे संग्रहीत है ।
जैन दर्शन कर्म - कर्त्तावादी और पुनर्जन्मवादी होने से इसका कथा साहि त्य विलक्षण-मनोवैज्ञानिक गली वाला है, और आत्माकी वृत्तियो का विविध शैली से विश्लेषण करने वाला है । अतएव इसका कथा-कोश विश्व साहित्य का अमूल्य धन है । जो कि प्रकाश मे आने पर ही ज्ञात हो मकता है ।
जैन - कला का ध्येय "सत्य, शिव, और सुन्दर" की साधना करना ही रहा है और इस दृष्टि से "कला केवल कला के लिए ही है" इस आदर्श का जैन-क्लाकारो ने पूरी तरह से पालन किया है ।
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