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[व्याख्या कोफ
कृष्ण लेश्या वाला और नील लेश्या वाला "तामस्" प्रकृति का होता है । कापोत लेग्या वाला और कुछ कुछ तेजो लेश्या वाला "राजस्" प्रकृतिः का होता है। इसा प्रकार कुछ कुछ तेजा लेश्या वाला और पद्म लेश्या वाला "सात्विक' प्रकृति का होता है।
जा आत्मा "राजस्, तामस् और सात्विक", तीनो गुणो अतीत हो. जाता है, इनसे रहित हो जाता है, वह जैन-परिभाषा में "शुक्ल लेश्या" वाला कहा जाता है, जिसे वेदान्त मे "परब्रह्म" कहते है । ६-राजू
दूरी आर विस्तीर्णता मापने का एक माप दड, जो कि करोडो और अरबों माइलो वाला होता है। खगोल विज्ञान वाले जैसे आलोक-वर्ष" नामक दूराका माप-दड निर्धारित करते है, वैसा हा किन्तु उससे ज्यादा बडा. यह माप-दंड है । विशेप उल्लेख इसी पुस्तक की भूमिका में देखें । ७--रूप ( १ ) सौन्दर्य,
(२) पुद्गलो का एक धर्म, जो कि आखो आदि इन्दियो द्वारा अथवा ज्ञान द्वारा देखा जाता है और जाना जाता है।
(३) रूप के ५ भेद किये गये है :
(१) काला, (२) नीला, ( ३ ) लाल, ( ४ ) पीला और (५ सफेद ।
इन पाचो के समिश्रण से सैकडो प्रकार का रूप-रग तैयार किया जा सकता है। ८-रूपी
रूप वाला, केवल पुद्गल ही रूपी होता है, वाका के सब दृव्य रूप रहिता ही होते है । रूपी दो प्रकार के होते है -
१ स्थूल रूपी २ सूक्ष्म रूपी ।
जो पुद्गल आखो आदि इन्द्रियो द्वारा देखा जा सके, वह तो स्थूल रूपा है, और जो पुद्गल आखो आदि इन्दियों द्वारा नही देखा जाकर केवल आत्मा की