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व्याख्या कोष]
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१ अनित्य, २ अशरण, ३ संसार, ४ एकत्व, ५ अन्यत्व, ६ अशुचित्व, •७ मानव, ८ संवर, ९ निर्जरा, १० लाक-स्वभाव, ११ वोधि-दुर्लभ और “१२ धर्म-भावना। ५-भाव-शाति
अपनी आत्मा के गुणो में ही आनद अनुभव करना, आत्मा के विकास में ही प्रफुल्लता की अनुभूति होना एवं सांसारिक सुख-सामग्री को हेय, तुच्छ अनुभव करते हुए उसमें दुख ही दुख समझना भाव-शाति है। सांसारिक सुख-शाति व्य-शाति है। ६-भोग
जो वस्तु एक ही बार भोगी जा सके; जैसे-खाने पीने के पदार्थ, आदि। ७-भौतिक-सुख
पुद्गलो मवधी सुख, इन्दियो सवंधी सुख, और सब प्रकार का सांसारिक सुख, भौतिक-सुख के ही अन्तर्गत है।
१–मति ज्ञान
पाचो इन्द्रियों को महायता से और बुद्धि की सहायता से जो ज्ञान पैदा होता है, वह मातनान है। आज कल जितना भी सब प्रकार का साहित्यिकज्ञान उत्पन्न हुआ है, और हा रहा है तथा होगा; वह सब मति ज्ञान के ही अन्तर्गत समझा जाता है। मति ज्ञान के भेदानुभेद मे ३६४ भेद किये गये है। २-मधुकरी
जैसे भवरा-प्रत्येक फूल से विना उमे किसी भा प्रकार का कष्ट पहुँचाये थोडा सा शहद (फूल का अन्ग) लेता है आर इस प्रकार अनेकानेक फूलो से-सहज रीति में ही अपनी इच्छा पूरी कर लेता है, वैसे ही अपने जीवन का बतमय और आदर्श बनाने के लिये जो व्यक्ति थोड़ा थोडा आहार-पानी,