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________________ ब्याख्या कोष [४३७ १२-परिग्रह इस के दो भेद है-१ भाव परिग्रह है, और दूसरा द्रव्य परिग्रह । ममता अथवा मूछी तो भाव परिग्रह है, और धन-धान्य, पशु-पक्षी; मोटर, मकान, दास-दासी, स्त्री-पुत्र, भाई बन्धु, सोना-चादी, और विभिन्न वैभव सामग्री दृव्य परिग्रह है। १३-परिणाम फल अथवा नतीजा। १४-परिषह इच्छा पूर्वक लिये हुए व्रतो की रक्षा के लिये, नियम, तप, संयम की रक्षा के लिए और त्याग-प्रत्याख्यान का पवित्रता के साथ पालन करने के लिये जो कष्ट अथवा दुख आकर पडे उन्हे शाति के साथ और निर्मलता पूर्वक दृढता के साथ सहन करना ही परिषह है । परिषहो का उत्पत्ति कुदरती कारणो से, मनुष्यो से, पशुओ से और देवताओ से हुआ करती है। परिषह के कुल २२ भेद शास्त्रो में बतलाये गये है। १५-पल्योपम काल का माप विशेप जा कि असंख्यात वर्षों का होता है । १६-पाप वुरी वात, जिन बुरे कामों के करने से आत्मा मर कर तिर्यच गति में अथवा नरक गति में एवं दुर्गति मे जाता हो । पाप के मुख्य १८ भेद कहे गये है और इनका फल ८२ प्रकार से-अशुभ रीति से भागा जाता है । १७--पांच इन्द्रियाँ शरीर, मुख,नाक आँख, और कान-ये पाच इनिया कहलाती है। १८-पुण्य भले काम, नैतिकता पूर्ण काम । जिन कामो को करने से आत्मा को अच्छी गति मिले, सुख-सुविधा, यश, सन्मान आदि की प्राप्ति हो; वे काम
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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