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व्याख्या कोष ]
२३- अविवेको
समय, स्थान और परिस्थिति एव मर्यादा का ध्यान नही रखते हुए बेपर्वाही के साथ कार्य करने वाला ।
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२४- अशुभ योग
मन को बुरे विचारो में लगाना, भाषा को कषाय वाला रूप देना, और शरीर को आलस्य, प्रमाद और व्यर्थ के कामो में तथा क्लेशका कामो में लगाना । मन योग, वचन - योग और काया योग इस प्रकार इसके तीन भेद है ।
२५ - असमी
जिसका अपनी इन्द्रियों और मन पर काबू नही हो और जिसका जीवनव्यवहार किसी भी प्रकार की नैतिक मर्यादा से वध हुआ नही हो, ऐस प्राणी "असंयमी " है |
२६ - अस विभागी
दूसरो के सुख-दुख का और हित अहित का ख्याल नही रखनेवाला एकान्त स्वार्थी ।
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१ आकाश
जीवो को, पुद्गलो का, पदार्थों को ठहरने के लिये स्थान देने वाला द्रव्य । मूल में यह शून्य रूप है, निराकार है और केवल शक्ति स्वरूप है अखिल ब्रह्माड व्यापी है, सपूर्ण लोक अलोक में फैला हुआ है ।
२ - आगम
अरिहतो के प्रवचन को, गणधरो के ग्रथों का और पूर्ववर आचार्य के साहित्य का आगम कहा जाता है । मोटे रूप में शास्त्रों को, सूत्रो को आगर कहा जाता है ।
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