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________________ व्याख्या कोष ] २३- अविवेको समय, स्थान और परिस्थिति एव मर्यादा का ध्यान नही रखते हुए बेपर्वाही के साथ कार्य करने वाला । [४१७ २४- अशुभ योग मन को बुरे विचारो में लगाना, भाषा को कषाय वाला रूप देना, और शरीर को आलस्य, प्रमाद और व्यर्थ के कामो में तथा क्लेशका कामो में लगाना । मन योग, वचन - योग और काया योग इस प्रकार इसके तीन भेद है । २५ - असमी जिसका अपनी इन्द्रियों और मन पर काबू नही हो और जिसका जीवनव्यवहार किसी भी प्रकार की नैतिक मर्यादा से वध हुआ नही हो, ऐस प्राणी "असंयमी " है | २६ - अस विभागी दूसरो के सुख-दुख का और हित अहित का ख्याल नही रखनेवाला एकान्त स्वार्थी । आ wing १ आकाश जीवो को, पुद्गलो का, पदार्थों को ठहरने के लिये स्थान देने वाला द्रव्य । मूल में यह शून्य रूप है, निराकार है और केवल शक्ति स्वरूप है अखिल ब्रह्माड व्यापी है, सपूर्ण लोक अलोक में फैला हुआ है । २ - आगम अरिहतो के प्रवचन को, गणधरो के ग्रथों का और पूर्ववर आचार्य के साहित्य का आगम कहा जाता है । मोटे रूप में शास्त्रों को, सूत्रो को आगर कहा जाता है । २०
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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