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शेब्दांनुलक्षी अनुवाद ]
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. ७०३ - मुनि मौन को ग्रहण करके शरीर मे रहें हुए ( आत्मास्य) क - को कपित कर दे |
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७०४ -झूठ वाली भाषा निरर्थक है ।
. ७०५ -- झूठ का वर्जन कर दो और अदत्ता दान को ( चोरी को ) छोड दो ।
७०६ - आत्मा को मोक्ष में ले जाने की इच्छा वाला मुनि झूठ नही बाले ।
७०७- - भिक्षु झूठ का परिहार कर दे ।
७०८ - निर्दोष भिक्षा देने वाला और निर्दोष भिक्षा पर जीवन निर्वाह करने वाला, दोनो ही सुगति को जाते हैं ।
७०९ -- यह काम - भोग नीचता की जड है ।
७१० -- मेधावी पुरुष (ज्ञान शाला ) लोभ से और मद से अतीत होते है, ( रहित होते है ) ।
७११ - आत्मा का गोपने वाला ( दमन करने वाला) वायु द्वारा मेरू के अकपन की तरह परिषहो को अविचलित होकर सहन करे ।
७१२ - मेधावी धर्म की समीक्षा करके पाप को दूर से ही छोड़ दे ।
७१३ – मेघावी अपने गृद्धि - भाव को हटावे ।
७१४ - मेधावी धर्म को जाने ।
७१५ – मोक्ष के सद्भूत ( यथार्थ ) साधन ज्ञान, दर्शन और चारित्र है ।
७१६ - दुष्ट आत्मा झूठ के पीछे और पहिले एवं प्रयोग काल में ( तीनो ही काल मे ) दुखी होता है ।
निश्चय ही मोह का घर हैं ।
७१७
- तृष्णा
७१८ – मोह से गर्भ को और मृत्यु को प्राप्त होता है ।
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,७१९ -- मोह हा तृष्णा का स्थान है ।
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