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________________ ३३४] 1 [ मूल-सूक्तिमां ३४५--जे इन्दियाण विसया मणुन्ना, न तेसु भाव निसिरे ( योग ११) क्याइ | ३४६–जे इह आरंभ निस्सिया आत दंडा । ( अनिष्ट २० ) 1 ३४७ - जे इह मायाइ मिज्जई, आगंता गब्भाय णतसो । V ( कषाय १५ ) ३४८ - जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ, जे सव्व जाणइ, से एग ( ज्ञान १३ ) ३४९ - जे एग नामे से बहु नामे, जे वहु नामे, से एग नामे । जाणइ । ( सात्विक १७ ) ( श्रमण - भिक्षु ५ ) ३५० - जे कम्हि विन मुच्छिए स भिक्खू । -३५१ - जे कोह दसी, से माण दसी । ( कषाय २७) ३५२ - जे गरहिया सणियाणप्पओगा, ण ताणि सेवति सुधीर ( महापुरुष ४६ ) ३५३ -- जे गारव होइ सलोगगामी, पुणो पुणो विप्परियासुवेति । धम्मा । ( अनिष्ट ३ ) ३५४-- जे गुणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गुणे | ( भाग ९ ) ३५५–जे गुणे से मूल ट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे । ( भोग ११) ३५६ – जेण वियाणइ से आया । ( आत्म ३ ) ३५७--जे णिव्बुया पावेहिं कम्मे हि अणियाणा ते . वियाहिया । ( महापुरुष ३६ ) ३५८ - जे दूमण ते हि णो णया, ते जाणंति समाहि माहिय । ( योग - ३ ) ३५९--जे घम्मे अणुत्तरे तं गिण्ह हियति उत्तम । ( धर्म २६ ) 1
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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