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शब्दानुलक्षी अनुवाद]
[३१७ २१५ --काम-भोग साक्षात् तालपुट विप के समान ही है। - २१६-काम-भोग कठिनाई से त्यागे जाते है । २१७-जिमको काम-भोग ही प्रिय है, उसके दुख शात नहीं होते है।
वह दु.खी हाता हुआ दुखो की आवृत्ति की ही प्राप्त करता
रहता है। २१८-दुख निश्चय ही काम-भोगो में अनुगृद्ध होने से उत्पन्न होते है। २१९--काम-भोगो पर विजय प्राप्त करना वडा ही कठिन है। २२०-काम-भोगो को हटा दो, इससे निश्चय ही दुख भी हट
जायगा। २२१-काम-भोग ससार को वढाने वाले है, ऐसा समझते हुए उन्हे
पतला कर दे - (क्षीण कर दे)। २२२-कायर पुरुष व्रत के नाश करने वाले ही होते है। .. -- २२३-काल-क्रम के अनुसार ही जीवन-व्यवहार को चलावे । । २२४-धीर पुरुप सत् क्रिया का आचरण करने वाला होवे । । - २२५-अनशन आदि तप द्वारा देह को कृश करे। -
२२६-हिंसा मे क्यो उद्यत रहते हो? २२७-नीच कर्म करने वाले कीलो से वीधे जाते है। २२८-ज्ञाति वालो के साथ मच्छित हुए, निर्बल आत्मा वाले. पुरुष
अन्त में घोर दुख पाते हैं। २२९–निर्बल आत्माएँ घर-गृहस्थी के जजाल मे ही फस जाती है । २३०-साधु-सज्जन पुरुपो के साथ सगति और परिचय करो। २३१---कुप्रवचन वाले पाखडी याने मिथ्यात्वीं सभी उन्मार्ग मे ही
स्थित है। - २३२ गुरु आदि के आश्रय मे रहता हुआ कछुऐ के समान अपनी इन्द्रियो
को और मन को सयम में रखने वाला होवे। २३३-काम-मोगो के रसो में गद्ध आत्मा अन्त में निरर्थक शोक करने
वाली कुररी नामक पक्षिणी की तरह परिताप को प्राप्त होती है।