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________________ सूक्ति-सुधा ] 7 २८३ पंचविहे सोए, पुढविसोए, आउसोए, तेउ सोए, मंतसोए, बंभसोए । ठाणा०, ५वा,ठा, उ, ३, ६ टीका-पांच प्रकार की वस्तुओ से पवित्रता का कार्य सपादन - किया जा सकता है। १ पृथ्वी-मिट्टी से, २ पानी-से, ३ अग्नि से, ४ मत्र से और ५ ब्रह्मचर्य से । ( ४२ ) पंचविहे ववहारे, अागमे, सुए, आणा, धारणा, जीए। . ठाणा०, ५ वा, ठा, उ, २, ७ टीका-पाच प्रकार के व्यवहार कहे गये है ~~-१ आगम, २ सूत्र ३ आज्ञा, ४ धारना, और ५ जीत । (१) केवल ज्ञानी, मन पर्याय ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, पूर्वधर - आदि का जीवन-व्यवहार-आगम-व्यवहार है । (२) सूत्रानुसार व्यवहार सूत्र-व्यवहार है। (३) अनुभवी, विद्वान् महापुरुष की आज्ञानुसार व्यवहार करना - आज्ञा-व्यवहार है। (४) पूर्व महापुरुष कृत व्यवहार को देखकर और प्रसगोपात्त उसे याद कर तदनुसार व्यवहार करना धारणा-व्यवहार है। (५) परम्परा से चले आये हुए व्यवहार के अनुसार व्यवहार: करना जीत-व्यवहार है। आगम-व्यवहार के सद्भाव मे शेष चार निषिद्ध है। सूत्र-व्यवहार के सद्भाव में शेष तीन निषिद्ध है।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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