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[बाल-जन-सूत्र
टीका-जो मनुष्य कायर होते है, अस्थिर और चचल वृद्धि के होते हैं, वे अन्त मे जाकर धर्म से भ्रष्ट हो जाते है। वे सम्यक् दर्शन से पतित हो जाते है, और अपना अनन्त जन्म मरण रूप संसार बढ़ा लेते है । कायर पुरुष हर कार्य मे विफल होता है, अयशस्वी होता है।
( ३६ ) सीयन्ति एगे वहु कायरा नरा । उ०, २०, ३
. टीका-अनेक आत्माऐ कायर वनकर, निर्बल वनकर, नैतिक मौर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने में असमर्थ होकर दुखी बन जाती है। हतोत्साह होकर शुभ-कार्य से हट जाना ही कायरता है। ऐसी कायरता ही विनाश का मार्ग है ।
( ३७ ) कुष्पवयण पासंडी, सब्ने उम्मग्ग पट्ठिया।
उ०, २३, ६३, टीका-कुदर्शन वादी सभी पाखडी है, मिथ्यात्वी है, वे सव उन्मार्ग में-मोक्ष मार्ग से सर्वथा विपरीत मार्ग में स्थित है। क्योकि उनका व्यय संसार के भोगो को भोगने की तरफ है।
(३८) सय सय पसंसंता, गरहंता परं वयं, संसारं ते विउस्सिया।
सू० १, २२, उ, २ का-जो मूर्ख केवल अपनी मान्यता की प्रशसा करते रहते हैं मोर दूसरो की मान्यता की सदैव निदा करते रहते है, वे सँसार में दृढ़ कबसे बध जाते है, यानी वे अनन्त जन्म मरण करते है और विविध लापत्तियो में से गुजरते है।