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सूक्ति-सुधा ]
( ३२ ) सव्वं विलविय गीयं. सव्वं नहं विडम्बियं ।
उ०, १३१६
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टीका - ससार के गीत - गायन विलाप रूप है, और सह प्रकार का खेल-तमाशा, मनोरजन-कार्य, नाचना, नाटक आदि विडम्वना रूप है, क्योकि ये क्षण भर के लिये आनददायी हैं मोट अत में परिणाम की दृष्टि से विष समान है ।
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( ३३ )
सपण दुक्खेण मूढे विष्परियास मुवे |
आ०, २, ९८, उ, ६
टीका - मोह और अज्ञान के कारण भोगो में फसा हुआ सूर्ख प्राणी अपने ही किये हुए कर्मों के कारण दुख पाता है, और सुख का प्रयत्न करने पर भी दुख ही का सयोग मिलता है । कर्मों के कारण अच्छा करने के प्रयत्न में भी बुरा संयोग ही पाता है
( ३४ )
जरा मच्चु व सोवणीए नरे, सययं मूढे धम्मं नाभि जाणइ ।
आ०, २, १०९, उ, १
टीका - - महामोहनीय कर्म के उदय के कारण मूढ़ मामा अज्ञान में ग्रसित होता हुआ तथा मृत्यु और जन्म के चक्कर में ही सदैव घूमता हुआ धर्म के स्वरूप को और ज्ञान दर्शन - चारित्र के रहस्य को नही समझ सकता है । वह इस चक्कर से नहीं छूट सकता है ।
( ३५ ) कायरा जणा लूसगा भवंति । आ० ६, १९० उ, ४