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टीका - प्राणियो के लिये नाना प्रकार का भय उत्पन्न करने वाले अज्ञानी जीव, सकारण और अकारण घोर पाप करते रहते है, और वे मर कर तीव्र ताप वाली एव घोर अधकार वाली तथा महा दुःख देने वाली नरक में जाकर उत्पन्न होते है |
[ अनिष्ट प्रवृत्ति-सूत्र
( २६ )
भुज्जो भुज्जो दुहावासं, असुहत्तं तहां नहा ।
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( २५ )
पावोवगा य आरसा, दुक्खफासा य अंतसो । सू०, ८, ७
टीका - - आरभ समारभ ही, और तृष्णा की तृप्ति के लिये किया जाने वाला प्रयत्न ही, हिंसा झूठ आदि पाप को उत्पन्न करता है, और अन्त में परिणाम स्वरूप दुःख की परपरा ही उत्पन्न होती है ।
सू०, ८, ११
टीका - अज्ञान-भाव, स्वार्थ भाव, इन्द्रिय-पोषण भाव और भोग
उपभोग की वृत्ति, ये सब जीव को रहती है, और ज्यो ज्यो अज्ञानी जीव अशुभ विचार वढता जाता है ।
बार बार दुख ही दुख देती दुख भोगता है, त्यो त्यो उसका इस प्रकार अज्ञान से अशुभ विचार और अशुभ विचार से दु.खोत्पत्ति - यह चक्र चलता ही रहता है ।
( २७ ) मिच्छ दिट्ठी अणारिया ।
सू०, ३, १३, उ, ४
टीका - जो अनार्य है, जो माम-मदिरा के खाने वाले है, जो