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सूक्ति-सुधा
( १५ ) पीय कामगुगोसु तरहा ।
[ २३५.
उ०, ३२, १०७
स्पर्श, इन
टीका - शब्द, रूप, रस, गंध और काम-भोगों में तृष्णा को हटाओ, इन्हें छोडोगे तभी सच्ची गांति प्राप्त होगी ।
( १६ )
सव्वं पि ते अपज्जतं. नेव तारणाय तं ।
उ०, १४, ३९
१
तो भीटीका-यदि सारे संसार का वैभव भी प्राप्त हो जाय, तृष्णा के लिये वह अपर्याप्त है । तृष्णा की शांति होना अत्यन्त कठिन है । ससार का वैभव आत्मा को जन्म-मरण से मुक्ति प्रदान करने मे कदापि समर्थ नही हो सकता है । आत्मा की मुक्ति तो भोगों के छोड़ने में ही रही हुई है ।