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सूक्ति-सुधा ]
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टीका - आत्मा मे रहे हुए मोह, मूर्च्छा, आसक्ति, वासना और विकार को काट दो, इन्हे हटा दो ।
( ३९ )
बहिया उढ मादाय, नावकखे कथाइ वि ।
उ०, ६, १४
टीका - अनासक्त जीवन को ही और स्थितप्रज्ञ अवस्था को ही सर्वोच्च, तथा सर्वश्रेष्ठ समझ कर आत्मार्थी पुरुष विषयसुख की
किसी भी समय मे और किसी भी दशा मे आकांक्षा न करे, भोरा
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सुख की तृष्णा न करे ।
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