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मानव संस्कृति में जैन दर्शन का योगदान
विपय-प्रवेश :
विशाल विश्व के विस्तृत साहित्यिक और सास्कृतिक प्रागण में आज दिन तक अनेक विचार धाराऐ और विविध दार्शनिक कल्पनाएं उत्पन्न होती रही है, और पुन 'काल क्रम से अनन्त के गर्भ में विलीन हो गई है। किन्तु कुछ ऐसी विशिष्ट, गातिप्रद, गभीर तथा तथ्य युक्त विचार धाराएँ भी समय समय पर प्रवाहित हुई है, जिनसे कि मानव-सस्कृति - मे सुख-शाति, आनद-मगल, कल्याण और अभ्युदय का सविकास हुआ है। .
इन दार्शनिकता और तात्विकता प्रधान विचार धाराओ मे जैन दर्शन तथा जैन-धर्म का अपना विशिष्ट और गौरव पूर्ण स्थान है। इस जैन-विचार धारा ने मानव-सस्कृति मे और दार्शनिक जगत् मे महान् कल्याणकारी और काति-युक्त परिवर्तन किये है। जिससे मानवइतिहास और मानव-संस्कृति के विकास की प्रवाह-दिशा ही मुड गई है। जैन-धर्म ने मानव-धर्मों के आचार-क्षेत्र और विचार-क्षेत्र, दोनो में 'हा मौलिक क्राति की है, दोनो ही क्षेत्रो मे अपनी महानता की विशिष्ट और स्थायी छाप छोड़ी है ।
चौवीस तीर्थकरो सवधी जन-परपरा के अनुसार जैन धर्म की प्राचीन मीमासा और समाक्षा नहीं करते हुए आधुनिक इतिहास और विद्वानों द्वारा मान्य दीर्घ तपस्वी भगवान महावीर स्वामी कालीन इतिहास पर विचार पूर्वक दृष्टिपात करे तो प्रामाणिक रूप से पता चलता है कि उस युग में भारत की संस्कृति वैदिक रीति-नीति प्रधान थी। उत्तर भारत