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टीका—अनत शाति का इच्छुक भिक्षु अत्यधिक निद्रा और प्रमाद का सेवन नही करे, बल्कि शास्त्र मे निर्दिष्ट निद्रा से ज्यादा निद्रा नही लेवे ।
सूक्ति-सुधा
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४१ )
( ४१
अलोल भिक्खू न रखेंखु गिज्झे ।
द०, १०, १७
- टीका - साधु - मर्यादा ग्रहण करके भिक्षु इन्द्रिय लोलुपता न रखे, इन्द्रियो के रसो मे गृद्ध न वने । भोगी और इन्द्रिय-लम्पट त हो । किन्तु रूखे-सूखे, नीरस ओर निस्वाद भोजन मे ही सतोष रखे । ( ४२ ) सामण्णं ' दुच्चर । उ०,१९,, २५
टीका — श्रमण-धर्म का पालना, साधु- वृत्ति का पालना, पाचो महाव्रतो की निर्दोप रूप से परिपालना करना अत्यंत कठिन है, तलवार की धार पर चलने के समान है । बल हीन आत्मा इस प्रशस्त और कल्याण कारी मार्ग पर नही चल सकता है |
( ४३ ) मज्जई ।
मुणी सू०, २, २, उ, २
टीका—सच्चा मुनि-महात्मा वही है, जो कि अहकार नहीं
करता है, अभिमान नही करता है, बल्कि विनय, नम्रता, सरलता को ही जीवन का आधार बनाता है ।
( ४४ )
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निरुप्रमो
निरहंकारो, चरे भिक्खु जिणाहियं ।
सू०, ९, ६
टीका - भिक्षु ममता रहित हो, आसक्ति रहित हो, अभिमान.