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• सूक्ति-सुधा ]
( २६ ) - भिक्खू सुसाहुवादी |
. -सू०, १३, १३
टीका - सयमी पुरुष का -- यांनी मोक्ष मार्ग के पथिक का यह कर्त्तव्य है कि वह मधुर भाषी हो, स्व-पर के लिये.. कल्याण-कारी भाषा का वोलने वाला हो, अप्रिय, कठोर, मर्म-घाती आदि दुर्गुणो चाली भाषा का वह परित्याग कर दे ।
( २७ ) विवित्त वासो मुणिणं पसत्थो । उ०, ३२, १६
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टीका-विविक्तं-वासं, अर्थात् एकान्त - निर्जन-वास ही मुनियो के लिये और आत्मार्थियो के लिये प्रशसनीय है, हितकर है, समाधिकर है और स्वास्थ्यकर है - 1
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चरे मुणी
( २८ ) -अन्नस्स - पाणस्स अणाणुगिद्ध | सू० १३, १७
टीका - स्वादिष्ट आहार- पानी में आसक्त नहीं होना चाहिये । योग्य पदार्थों के प्रति मूर्च्छा भाव नही रखना चाहिये । आसक्ति भाव ही अथवा मूर्च्छा भाव ही पतन का सीधा मार्ग है । एक बार पतन का प्रारम्भ होते ही पतन की परम्परा चालू हो जाती है । कहा भी है कि - "विवेक भ्रष्टानाम् भवति विनिपात. शतमुख. ।"
( ३९ ) सव्वउ विमुक्के | सू०, १०, ९ -
टीका—सव प्रकार के मानसिक, वाचिक, शारीरिक और पौद्गलिक परिग्रहो से रहित होकर तथा अनासक्त होकर, इसी प्रकार अनर्थो से रहित होकर, मुनि या आत्मार्थी पुरुष पूर्ण शाति के साथ अपना जीवन काल व्यतीत करे ।
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