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सूक्ति-सुधा
[ १४१ (४) वतं नो पड़िआयइ जे स भिक्व ।
द०,१०,१ टीका-त्याग किये हुए विषयो को, कषायो को, इन्द्रियों के भोगो को जो पुरुष पुनः नही ग्रहण करता है, वही दृढ़चित्त वाला है। वही वास्तव मे भिक्खू या भिक्षु है । वही सच्चा साधु है । वही महापुरुष है।
अ कम्हि वि न मुच्चिए स भिक्खू।।
- . उ०, १५, २ * टीका-जो पुरुष किसी भी प्रकार की वस्तु में अथवा भोग मे, यश-कामना में या पद लोलुपता मे मूच्छित नही होता है, आसक्त नहीं होता है, वही भिक्षु है, वही आत्मार्थी है और संसार में रहता हुधा भी वही जीवन-मुक्त पुरुष है ।
मण वय कायसु संवुडे स मिक्खू ।
उ., १५, १२ ६ टीका-जिसने अपने मन, वचन और काया पर भली प्रकार से संयम रूप अंकुश लगा दिया है, जिसने इन्द्रियो और मन पर काबू कर लिया है, वही सच्चा भिक्षु है, वही विदेह महापुरुष है। .
. . (७) जिइन्दिओ सधश्रो विप्प नुक्के, ___ अणुक्कसाई स भिक्ख।
उ०, १५, १६ टीका-जो जितेन्द्रिय है, जो सव प्रकार के परिग्रह से, मोह से यौर ममता से रहित है, जो अल्प कपायी है, वही वास्तविक साधु है, वही उन्मुक्त महापुरुप है। .