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[उपदेश-सूत्र
निहं च न बहु मन्निजा।।
द०, ८, ४२ - टीका-बहुत निद्रा नही लेना चाहिये, क्योकि यह प्रमाद है। प्रमाद का सेवन करने से वह रोग वढता ही हैं, घटता नही है। -
(३१) दुल्लहे खलु माणुसे भवे । , ,
उ०, १०,४ टीका-यह मानव-गरीर अति दुर्लभ है । महान् पुण्यो के । संयोग से इसकी प्राप्ति हुई है। इसलिये इसे भोगों में न व्यतीत कर सत्कार्यो में ही लगा रखो। .
. (३२) . जीवो पमायं बहुलो।
. . उ०, १०, १५ .. टीका-प्रकृति से ही जीव अत्यन्त प्रमादी होता है। आलस्य का सम्बन्ध जीव के साथ अनादि काल से है । इसलिये सावधान होकर सदैव सत्-प्रवृत्तियो में ही लगे रहना.चाहिये। आलस्य से बचना चाहिये। - ... ,
-. (३३ ) - -- --- भग्गं कुसीलाण जहाय सव्व । महा नियठाण पए पहेण ।
उ०, २०, ५१ टीका-कुशीलियो के, मिथ्यात्वियों के, और विषय विकारों के मार्ग को सर्वथा छोडकर महानिग्रंथों द्वारा और भगवान् महावीर स्वामी द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर जो अनासक्त अविकार मय और यमूर्मिय है, उस मार्ग पर चलो। यही एक कल्याण कारी मार्ग है।