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सूक्ति-सुधा]
[ ११५ 1 टीका-सुविनीत आत्माएं यानी ज्ञान, ध्यान, विनय, भक्ति, सेवा, ईश्वर-आराधना आदि सत्कार्यो में सलग्न आत्माएं सुखऐश्वर्य, यश-कीति, ऋद्धि-सिद्धि, आदि नाना प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त करती हुई देखी जाती है।
नमइ महावी। . . . उ०, १.४५ - . टीका-मेघावी-बुद्धिमान् और मुमुक्षु (मोक्ष का इच्छुक ) 'ही नम्र होता है । वही विनय-शील होता है। क्योकि वह जानता है कि विनय ही मोक्ष की सर्व प्रथम सीढी है।
निरट्राणि उवज्जए। .. . ... : उ०, १,८ . , . . . . ६. टीका-निरर्थक वातो से, विकथा-निन्दा और वैर-विरोध वाली बातो से दूर रहना चाहिये। इनका परित्याग कर देना चाहिये। .
अकग्गा कम्म खति धीरा ।
सू० १२.१५ दीका-धीरं पुरुष और ज्ञानी आत्माएँ अनासक्त तथा सत् कर्मण्य शील होने से अपने पूर्व कर्मों का क्षय कर डालती है; तथा . नवीन आश्रव को भी रोक,कर मोक्षका मार्ग प्रशस्त कर देती है।
(८)
• • • उववाय कारी ये हरीमणे, य एगत दिट्ठी य अमाइ रुवे ।
-सू, १३,६ : टीका-जो पुरुष अपने गुरु जनों की आज्ञा पालन करने वाला है, पाप करने से जो लज्जा रखता है, डरता है, एवं जीव, आत्मा,