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सात्विक-प्रवृत्ति-सूत्र
मिति भूपसु कप्पर ।।
उ०, ६, २ । टीका-प्राणी मात्र पर, ससार के सभी जीवो पर, मैत्री भावना रक्खो । अविरोध-भावना का ही पोपण करो । कल्याण मय भावना की ही कल्पना करो। किसी को भी शत्रु न समझो ।
(२) इंगियागार संपन्ने से विणीए ।
उ०, १,२ वेका-इगित यानी इशारे और आकार-प्रकार से ही बात को समझ जाने वाला, और उसके अनुसार काम करने वाला भविनीत" कहलाता है।
खमेह अवगाहं मे, वइज्ज न पुणु त्ति श्र।
द०, ९, १८, द्वि, उ, टीका--" मेरा अपराध क्षमा करे, अब दुबारा ऐसा अपराध नहीं करुंगा, ऐसा बोले," यह लक्षण विनय शील और आत्म कल्याण की भावना वाले का है।
सुविणी अप्पा दीसति सुह मेहता।
८०, ९, ६, द्वि, उ,