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क्षमा-सूत्र
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'खति सविज्ज पंडिए ।
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उ०, १, ९
- टीका - पंडित की - बुद्धिमान की सार्थकता इसी में है कि वह क्षमा धारण करे । कैसी भी विषम और जटिल परिस्थिति हो तो भी क्षमा ही रक्खे |
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( २ ) खन्तीपूर्ण परिसहे जिणइ ।
उ०, '२९, ४६व, ग
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टीका -क्षमा धारण करने से परिषहो को और उपसर्गों को तथा आपत्ति - विपत्ति को सहन करने की शक्ति पैदा होती है । शत्रुता मिटकर मित्रता की भावना पैदा होती है ।
( ३ )
खमावणार पल्हा यण भावं जणय ।
उ., २९, १७ वा,
टीका - अपने अपराधों के लिये क्षमा मांगने से तथा नम्रता और विनय वारण करने से चित में प्रसता होती है । आत्मा पापों से हल्की होती है ।
( ४ )
पिय मध्वियं सव्वं तितिक्लपज्जा ।
०, २१, १५