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[सद्गुण-सूत्र टीका-मानको, अहकार को मृदुता से और नम्रता से जीतना चाहिये । नम्रता से विरोधी भी नरम और अनुकूल हो जाता है।
(५) माय अज्जव भावेण ।
द०, ८, ३९ टीका-माया को, कपट को सरलता से जीतना चाहिये । सरल हृदय मे ही ईश्वर का वास हैं।
लोस संतोप्लयो जिण।
द०, ८, ३९ ___टीका-लोभ को, लालचको सतोष से जीतना चाहिए । सतोष बराबर धन नहीं है । सतोपो ही सुखी है । और असन्तोषी सदैव दुखी है, चाहे वह धनी हो या निर्धन । असतोष की लहरे, तृष्णा की तरगे अनन्त है, उनका कभी अत ही नहीं आ सकता है।
दुक्ख हयं जस्स न होइ मोहो, . मोहो हो जस्स न होडतहा।
उ०, ३२,८ टीका-जिसकी आत्मा मे मोह नही है, उसे दुख नही हो सकता है । यानी मोह के अभाव मे दु ख का अभाव हो जाता है। इसी प्रकार मोह के नाग मे ही तृष्णा का नाश रहा हुआ है। जिसका मोह नष्ट हो गया है उसकी तृष्णा भी नष्ट हो गयी है। .
(८) तण्डा हया जस्स न होई लोहो, लोहो हो जस्स न किंचणाई
उ०, ३२,८