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सूक्ति-सुधा ]
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संसारी और भोगी आत्मा का जीवन भी अचानक टूट जाता है । अनन्त काल चक्र के सामने प्रत्येक ससारी आत्मा का एक गति विशेष में कितना लम्बा आयुष्य होता है ? छोटा सा होता है, अतएव समय और " शक्ति का सदुपयोग ही करते रहना चाहिये । यही बुद्धिमानी का लक्षण है ।
(७) - :
णय संखय मोहु जीवितं, तह विथ बाल जणो पगभई ।
सू०, २, १०, उ, ३
टीका - टूटी हुई आयु पुन जोड़ी नही जा सकती है | व्यतीत हुआ जीवन पुन. प्राप्त नही किया जा सकता है । फिर भी मूर्ख मनुष्य, विवेक हीन पुरुष, कामान्ध प्राणी पाप करने की धृष्टता करते ही रहते है । वे स्वार्थ साधना और इन्द्रिय-पोषण में ही मग्न रहते है ।
( ८ )
तरुण ए वाससयस्स तुट्टती इन्तरवासे, वुज्झह !
य
सू०, २, ८, उ, ३
टीका -- सौ वर्ष की आयुवाले पुरुष का भी जीवन युवावस्था में ही नष्ट होता हुआ देखा जाता है । इस लिये इस जीवन को थोड़े दिन के निवास के समान समझो और क्षण भर का भी प्रमाद मत " करो, तथा सदैव सत्कार्यों में ही लगे रहो ।....
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८
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जह
वंधण - चुए
ताले एवं श्राखयमि तुट्टती ।
२, ६, उ, १