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सूक्ति-सुधा. ]
( २५ -) जा जा दिच्छसि नारीओ, अपि भविस्ससि ।
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( २६ ) नो रख सीसु गिज्झेज्जा, गंडवच्छासु अणेग चित्तासु ।
द०, २, ९
टीका - मानसिक - नियत्रणता के अभाव में जिन २ स्त्रियो को देखोगे, उससे प्रत्येक बार तुम्हारा मन और आत्मा अस्थिर, निर्बल और वायु विकम्पित वृक्ष के समान चचल बनेगी । अतएव विषयो से चित्त को हटाओ ।
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- ( २७ ) लद्धे कामे ण पत्थेज्जा ।
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उ०, ८, १८
टीका — जिनके वक्ष स्थल पर कुच है - स्तन है, और जो अस्थिर चित्तवाली है, यानी विभिन्न विषयो पर चित्त को जो परिभ्रमण कराती रहती है, तथा जो धर्म, धन, शरोर और शक्ति आदि सभी सत्गुणो का नाश करने वाली है, ऐसी राक्षसी समान स्त्रियो में कभी भी मूच्छित् न वनो ।
( २८ ) गंभयारिस्स इत्थी - विग्गहओ
भयं ।
द०, ८, ५४
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सू०,९, ३२
टीका - काम-भोगो को भोगने का अवसर मिल जाय तो ब्रह्मचारी पुरुष उनको । मन, वचन और कायासे नहीं भोगे । उनको भोगने की इच्छा भी नही करे । और उस विघ्नकारी स्थान को छोड़ कर अन्यत्र वीतरागता पूर्वक चला जाए ।