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[ सत्यादि भाषा-सूत्री
(१३६), माया मोसं'विवज्जए। .
। द०, ८, ४७ । टिका--कपट पूर्वक झूठ बोलना भयकर पाप माना गया है । कपट-पूर्वक-झूठ आत्मा के गुणो का नाश करने वाला होता है। , . . . . ( ३७ ) . . .
ओए तहीयं फरुसं वियाणे ।
सू०, १४, २१ . टीका--जो वचन सत्य होते हुए भी दूसरे के चित्तको दुःखी करने वाले है, तो बुद्धिमान का कर्तव्य है कि वह ऐसे वचन नही वोले । अप्रिय और कठोर वचनो का त्याग ही हितावह है ।
( ३८ ) . . . . . प्राणाइ सुद्धं वयणं भिउंजे।
सू०, १४, २४ टिका-जैसी भगवान ने आज्ञा दी है, उसीके अनुसार शुद्ध भापा का उच्चारण करना चाहिये । - भाषा में ग्रामीणता, अश्लीलता, तुच्छता, तिरस्कार वृत्ति आदि दुर्गुण नही होने चाहिये।
(३९) णातिवेलं वदेज्जा।
सू०, १४, २५ - • टीका--मर्यादा का उल्लंघन करके अत्यधिक नही बोलना चाहिये । भापा परिमित, सार्थक और शिष्ट--पुरुष के अनुरूप होनी चाहिये।