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[ सत्यादि भाषा-सूत्र
,' : टीका-पूछा हुआ यानी किसी के द्वारा कोई प्रश्न या बात पूछने पर सावद्य न बोले, पापकारी, अनिष्ठकारी, अप्रिय और कटु वाणी नही वोले।
नापुटो चागरे किंचि।
, उ०, १, १४ . ____टीका--विना पूछे विना वोलाये कुछ भी नहीं बोले । यही बुद्धिमानी का सर्व प्रथम लक्षण है। ।
.' (१४) जं छन्नं तं न बत्तव्वं।
सू०, ९, २६ टीकाजिस बात को सब लोग छिपाते हैं, जो अकथनीय हो, अश्लील हो, ग्रामीण हो, असभ्य हो, उसे कदापि नही बोलना चाहिये।
व्यवहार का ध्यान रख कर ही बोलना ठीक है, अव्यवहारिक भाषा निंदनीय है, वह त्याज्य और हानिकारक होती है।
स०.
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. .: अणचिंतिय वियागरे।
सू०, ९, २५ टीका-सोच विचार कर बोलना चाहिये। विना सोचे विचारे वोलने से स्व की और 'पर की हानि हो सकती है। अविचार पूर्ण भाषा से अनेक प्रकार का नुकसान हो सकता है जबकि विचार पूर्वक वोलने से लाभ ही लाभ है।
(१६) तुम तुमं ति अमणुन्नं, सव्वसो तं ण वत्तए।
सू०, ९,२७