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सूक्ति-सुधा ]
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टीका — अहित करने वाली, पर मर्म पर आघात करने वाली, हिंसा तथा द्वेष बढ़ाने वाली भाषा नही बोलनी चाहिये ।
( ८ )
न श्रसन्भमाहु |
उ०, २१, १४
क्लेश सवर्धक, ग्रामीण तुच्छ शब्द
i.
टीका—असभ्य, अप्रिय, नही बोलना चाहिये |
( ९ )
सच्चे तत्थ करेज्जु वक्कमं ।
सू०, २, १४, उ, ३
टीका - सत्य और सत्य से सम्बन्धित सभी कामो मे और क्रियाओं मे सदैव यत्नशील ही रहना चाहिये । सत्य का दृढ़ता पूर्वक आग्रह और अवलवन रखना मनुष्य का कर्त्तव्य है । ( १० )
सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति ।
सू०, ६, २३
टीका--सत्यवचनो में भी जो वचन सत्ययुक्त होता हुआ मर्म घाती सत्य न हो, वही वाक्य
निर्दोष हो, अप्रिय सत्य न
सर्वोत्तम सत्य रूप है |
हो,
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6.
(११) अप्पं भासेज्ज, सुइत्रए । सू०, ८, २५
टीका-सुव्रती, ज्ञानी, अल्प बोले । परिमित बोले । 'आवश्यकतानुसार बोले । सत्य और प्रिय वोले |
( १२ )न लदे पुट्ठो सावज्जै ।
उ०, १, २५