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[धर्म-सूत्र
(१६) हाई भोयण विरो, जीवो भवइ अणासवो।
__3०, ३०,२ टीका--रात्रि में भोजन करने का परित्याग करने से, जल आदि पेय पदार्थ का परित्याग करने से, आत्मा नये पाप कर्मों के बधन से मुक्त हो जाता है । इससे आश्रव भाव का निरोध होता है।
(१७) दिवं च गई गच्छन्ति,
चरित्ता धम्म मारियं ।
__ . उ०, १८, २५ । टीका--जो आर्य धर्म का-अहिंसा, सत्य, अनासक्ति और ब्रह्म चर्य आदिका आचरण करते है, वे दिव्य गति--देव गति और मनुष्य गति को प्राप्त होते है।
. (१८) धम्म अकाऊणं जो गच्छा परं भवं, सो दुही होइ ।
उ०, १९, २० · टीका-जो आत्मा बिना धर्म किये ही-दान, शील, तप और भावना का आराधना किये बिना ही परलोक मे जाता है, वह महान दुःखी होता है। उसे नाना विधि अप्रिय सयोगो का और प्रिय वस्तुओ के वियोगो का सामना करना पडता है।
से सोयई मच्चु मुहोवणीए, ' धम्म अकाऊण परमि लाए ।
उ०, १३, २१