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'सूक्ति-सुधा ]
(१६) मोक्ख सम्भूय साहणा, नाणं च दंसणं चेव, चरित चेव ।
उ०, २३, ३३
टीका -- मोक्ष प्राप्तिके सद्भूत साधन - वास्तविक कारण सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र ' है । तीनो की सम्मिलित प्राप्ति से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है ।
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( १७ ) अगुणिस्स नत्यि मोक्खो ।
उ०, २८, ३०
टीका——जिस आत्मामें सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र नही है, जिस आत्माका दृष्टिकोण ससार सुखको ही प्रधान मानकर अपने विश्वास, ज्ञान और आचरण की प्रवृत्ति करना मात्र है, और जिसकी मोक्ष सुख के प्रति उपेक्षा है, उस आत्माको मोश्च की प्राप्ति नही हो सकती है । कर्मों से उसको छुटकारा नही मिल सकता है ।
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( १८ ) नत्थि श्रमोक्खस्स निव्वाणं ।
उ०, २८, ३०
टीका - जिस आत्मा के कर्मो के वन्धन नही कटे है, उस आत्मा को निर्वाण की, अनन्त ईश्वरत्व की प्राप्ति नही हो सकती है ।
( १९ )
तं ठाणं सासयं वासं, जं संपत्ता न सोयन्ति ।
उ०, २३, ८४
टीका -- वह स्थान यानी मोक्ष शाश्वत् है, नित्य है, अक्षय है, अप्रतिपाती है, और निराबाध सुख वाला है, इसको प्राप्त करके भव्य आत्माऐं शोक रहित हो जाती है । जन्म-मरण की व्याधियों से मुक्त हो जाती है ।