SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५ बोल . , पहले बोले गति' चार : १ नरक गति, २ तिर्यच गति, ३ मनुष्य गति, ४ देव गति । दूसरे बोले जाति पाँच : १ एकेन्द्रिय, २ बेइन्द्रिय, ३ त्रीन्द्रिय, ४ चौरिन्द्रिय, ५ पचेन्द्रिय । तीसरे बोले काय छ १ पृथ्वीकाय, २ अपकाय, ३ तेजस्काय, ४ वायुकाय, ५ वनस्पतिकाय, ६ त्रसकाय। चौथे बोले इन्द्रिय पाँच - १ श्रोत्रेन्द्रिय, २ चक्षुइन्द्रिय, ३ घ्राणेन्द्रिय, ४ रसनेन्द्रिय, ५ स्पर्शेन्द्रिय। १ जहाँ पर जीवो का आवागमन (जन्म-मरण) होवे उसे गति कहते है। २ एक सा होना, एकाकार होना जाति है। ३ समूह तथा बहु प्रदेशी वस्तु को काय कहते है। ४ शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि वस्तुओ का जिसके द्वारा ग्रहण होता है, उसे इन्द्रिय कहते है । ये पॉच है-१ कान, २ आँख, ३ नाक, ४ जीभ, ५ शरीर ( गले से पैर तक धड )।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy