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________________ छः काय के बोल ५६ सीमा पर 'शिखरी' नामक पर्वत है, जो 'चुल्ल हेमवन्त' पर्वत के सामान है । इस शिखरी नामक पर्वत के पूर्व पश्चिम के सिरो पर भी २८ अन्तर द्वीप है । इस प्रकार दो पर्वत के सिरो पर कुल छप्पन अन्तर द्वीप है । संमूच्छिम मनुष्य के भेद - समूच्छिम मनुष्य-गर्भज मनुष्यके एक सौ एक क्षेत्र में १४ स्थानों ( जगह ) में उत्पन्न होते है । १४ उत्पत्ति स्थानो के नाम : १ उच्चारेसुवा - बडी नीति - विष्टा मे । २ पासवणेसुवा -- लघु नीति - पेशाब (मूत्र) में । ३ खेलेसुवा - खँखार मे । 9 ४ संघारण सुवा - श्लेष्म नाक के मेल मे । ५ वसुवा - वमन - उल्टी मे । ६ पित्सुवा - पित्त में । ७ पुइयेसुवा - रस्सी - पीप मे । ८ सोणियेसुवा - रुधिर - रक्त मे । ९ सुक्केसुवा - वीर्य रज मे । १० सुक्कपोग्गलप डिसाडिया एसुवा - वीर्य के सूखे पुद्गल पुनः गीले होवे उसमे । मृतक शरीर मे । ११ विगयजीव कलेवरेसुवा - मनुष्य के १२ इत्थि पुरिससजोगेसुवा - स्त्री पुरुष के १३ नगरनिद्धमनियाएसुवा - नगर की गटर आदि में । सयोग मे । १४ सव्व असुईठाणेसुवा - सर्व मनुष्य सम्बन्धी अशुची स्थानों में । गर्भज मनुष्य की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की, उत्कृष्ट तीन पल्यो
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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