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________________ जैनागम स्तोक संग्रह आठ लाख योजन का अर्ध पुष्कर द्वीप है, जिसमें २ हेमवय, २ हिरण्यवय, २ हरिवास, २ रम्यक्वास २ देवकुरु, १ उत्तरकुरु ये १२ क्षेत्र है। इस प्रकार ये तीस क्षेत्र अकर्मभूमि के है, जिनमें न खेती आदि होती है, न विवाह आदि कर्म होते है, और न वहां कोई मोक्ष मार्ग का ही साधन है। ३ छप्पन अन्तरद्वीप के क्षेत्र : मेरु पर्वत के उत्तर में भरत क्षेत्र की सीमा पर १०० योजन ऊंचा २५ योजन पृथ्वी में अंडा (गहरा) १०५२१३ [१२कला] योजन चौडा २४६३२ योजन और कला लम्बा पीले सोने काचल्लहेमवन्त पर्वत है। इसकी बांह ५३५० योजन और १५ कला की है । धनुष्य पीठीका २५२३० योजन और ४ कला की है । इस पर्वत के पूर्व पश्चिम सिरे से चोरासीसौ, चोरासीसो योजन जाझेरी लम्बी दो डाढ़ें (शाखा) निकली हुई है । एक-एक शाखा पर सात-सात अन्तर द्वीप है । जगती (तलहटी) से ऊपर की डाढ की ओर ३०० योजन जाने पर ३००योजन लम्बा व चौडा पहला अन्तर द्वीप आता है। वहाँ से चार सौ योजन जाने पर चार सौ योजन लम्बा व चौडा दूसरा अन्तरद्वीप आता है। वहाँ से ५०० योजन आगे जाने पर ५०० योजन लम्बा व चौडा तीसरा अन्तर द्वीप आता है। वहाँ से ६०० योजन आगे जाने पर ६०० योजन लम्वा और चौडा चौथा अन्तर द्वीप आता है। वहाँ से ७०० योजन आगे जाने पर ७०० योजन का लम्बा व चौडा पाँचवां अन्तर द्वीप आता है । वहा से ८०० योजन आगे जाने पर ८०० योजन लम्बा व चौडा छठा अन्तर द्वीप आता है। वहाँ से ६०० योजन आगे जाने पर ६०० योजन लम्बा व चौडा सांतवां अन्तर द्वीप आता है।। इस प्रकार एक २ शाखा पर सात-सात अन्तर द्वीप है । इन्हे चार से गुणा करने पर [चार शाखा पर] २८ अन्तर द्वीप हुए। ये अन्तर द्वीप 'चुल्ल हेमवन्त' पर्वत पर है। ऐसे ही ऐरावत क्षेत्र की
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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