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________________ छः काय के बोल छः काय के नाम-१ इन्द्र ( इन्दी) स्थावर, ब्रह्म ( भी ) स्थावर, ३ शिल्प (सप्पी) स्थावर, ४ सुमति ( समिति ) स्थावर ५ प्रजापति ( पयावच्च) स्थावर, ६ जंगम - त्रस | छ. काय के गोत्र - १' पृथ्वी काय, अप काय, तेजस् काय, वायु काय, " वनस्पति काय, त्रस काय | पृथ्वी काय पृथ्वी काय के दो भेद – १ सूक्ष्म, २ वादर (स्थूल ) । १. सूक्ष्म पृथ्वीका - सव लोक मे भरे हुए हैं, जो हनने से हनाय नही, मारने से मरे नही, अग्नि मे जले नही, जलमे डूवे नही, आँखो से दिखे नहीं, व जिसके दो टुकड़े होवे नही, उसे सूक्ष्म पृथ्वीकाय कहते है । २. वादर (स्थूल) पृथ्वीकाय लोक के देश भाग मे भरे हुए हैं जो मरे, अग्नि मे जले, जल में चलते डूबे, दो टुकड़े हो जावे । हनने से नाय, मारने से आँखो से दिखे व जिसके १ मिट्टी, २ जल, ३ अग्नि, ४ पवन, ५ कन्द मूल फलादि ६ हलनचलन करने वाले प्राणी (जीव ) । ४१ !
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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