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________________ खेताणु-वाई ५६६ में संख्यात गुणा उनसे अधो-तीर्छ लोक मे सख्यात गुणा उनसे ऊर्ध्व लोक में सख्यात गुणा उनसे अधो लोक में संख्यात गुणा उनसे तीर्छ लोक मे असख्यात गुणा। पुद्गल क्षेत्रापेक्षा सब से कम तीन लोक मे उनसे ऊर्ध्व-तीर्छ लोक मे अन० गुणा उनसे आधो-तीर्छ लोक में विशेष लोक मे उनसे तीर्छ अनन्त गुणा असं० उनसे ऊर्ध्व लोक में उनसे अस० गुणा उनसे अधोलोक मे विशेष। द्रव्य क्षेत्रापेक्षा : सब से कम तीन लोक मे उनसे ऊर्ध्व-तीर्छ लोक मे अनत गुणा उनसे अधो तीर्छ लोक मे विशेष उनसे ऊर्ध्व लोक मे अनत गुणा उनसे अधो तीर्छ लोक में अनत गुणा उनसे ऊर्ध्व तीर्छ लोक मे अनंत गुणा । पुद्गल दिशापेक्षा सब से कम ऊर्ध्व दिशा मे उनसे अधो दिशा मे विशेष, उनसे ईशान नैऋत्य कोन मे अस० गुणा उनसे अग्नि वायव्य कोन मे विशेष, उनसे पूर्व दिशा मे अस० गुणा उनसे पश्चिम दिशा मे विशेष । उनसे दक्षिण दिशा में विशेष और उनसे उत्तर दिशा मे विशेष पुद्गल जानना। द्रव्य दिशापेक्षा सब से कम द्रव्य अधो दिशा मे, उनसे ऊर्व दिशा मे अनन्तगुणा उनसे ईशान नैऋत्य कोन मे अनन्तगुणा, उनसे अग्नि वायु कोन मे विशेष उनसे पूर्व दिशा मे असख्यात गुणा उनसे पश्चिम दिशा मे विशेष, उनसे दक्षिण दिशा में विशेष उनसे उत्तर दिशा मे विशेष।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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