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________________ जनागम स्तोक सग्रह (५) दिट्टी सामन्न-सामान्य से विशेष को जाने । जैसे एक रुपये को देख कर अनेक रुपये जाने । एक मनुष्य को देखने से समस्त देश के मनुष्यों को जाने । अच्छे-बुरे चिन्ह देखकर तीनों ही काल के ज्ञान की कल्पना अनुमान से हो सकती है। उपमा प्रमाण :-उपमा देकर समान वस्तु से ज्ञान (जानना) करना । इसके ४ भेद : (१) यथार्थ वस्तु को यथार्थ उपमा, (२) यथार्थ वस्तु को अयथार्थ उपमा, (३) अयथार्थ वस्तु को यथार्थ उपमा और (४) अयर्थाथ वस्तु को अयथार्थ उपमा। ___ सामान्य विशेष-सामान्य से विशेष बलवान है। समुदाय रूप जानना सो सामान्य । विविध भेदानुभेद से जानना सो विशेष । जैसे द्रव्य सामान्य, जीव-अजीव ये विशेष । जीव द्रव्य सामान्य, संसारी सिद्धि विशेष इत्यादि। गुण गुणी-पदार्थ में जो खास वस्तु (स्वभाव) है वह गुण और जो गुण जिसमें होता है वो वस्तु (गुणधारक) गुणी है । जैसे ज्ञान यह गुण और जीव गुणी, सुगन्ध गुण व पुष्प गुणी । गुण और गुणी अभेद (अभिन्न) रूप से रहते है। ___ ज्ञेय-ज्ञान-ज्ञानी-जानने योग्य (ज्ञान के विषय भूत) सर्व द्रव्य ज्ञेय । द्रव्य का जानना सो ज्ञान है और पदार्थों को जानने वाला वो ज्ञानी । ऐसे ही ध्येय ध्यान ध्यानी आदि समझना। उपन्न वा, विहज्जेवा धुवेवा-उत्पन्न होना, नष्ट होना और निश्चल रूप से रहना । जैसे जन्म लेना, मरना व जीव याने कायम (अमर) रहना । __आधेय-आधार-धारणा करने वाला आधार और जिसके आधार से (स्थित) रहे वो आधेय । जैसे—पृथवी आधार, घटादि पदार्थ आधेय । जीव आधार, ज्ञानादि आधेय ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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