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________________ ५४४ जैनागम स्तोक सग्रह दर्शन सहित विराजमान हो उन्ही को ही महावीर मानना (कहना) सो भाव निक्षेप । इस प्रकार जीव, अजीव आदि सर्व पदार्थो का चार निक्षेप लगा कर ज्ञान हो सकता है। द्रव्य गुण पर्याय द्वार-धर्मास्ति काय आदि जैसे ६ द्रव्य है। चलन सहाय आदि स्वभाव यह प्रत्येक का अलग-अलग गुण है और द्रव्यो में उत्पाद-व्यय, ध्रौव्य आदि परिवर्तन होना सो पर्याय है। हटान्त : जीव-द्रव्य, ज्ञान, दर्शन आदि गुण, मनुष्य, तिर्यच, देव; साधु आदि दशा यह पर्याय समझना। द्रव्य, क्षेत्र-काल-भाव द्वार=द्रव्य-जीव अजीव आदि आकाश प्रदेश यह क्षेत्र, समय यह काल (घड़ो जाव काल चक्र तक समझना) वर्ण, गन्ध, रस स्पर्श आदि सो भाव । जीव, अजीव सब पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव घट (लागू) हो सकता है। द्रव्य भाव द्वार-भाव को प्रकट करने मे द्रव्य सहायक है । जैसे द्रव्य से जोव अमर, शाश्वत भाव से अशाश्वत है। द्रव्य से लोक शाश्वत है भाव से अशाश्वत है अर्थात् द्रव्य यह मूल वस्तु है, सदैव शाश्वत है । भाव यह वस्तु की पर्याय है अशाश्वती है। जैसे भौरे के लक्कड़ कुतरते समय 'क' ऐसा आकार वन जाता है सो यह द्रव्य 'क' और किसी पण्डित ने समझ कर 'क' लिखा सो भाव 'क' जानना। कारण-कार्य द्वार-साध्य को प्रगट कराने वाला तथा कार्य को सिद्ध कराने वाला कारण है। कारण बिना कार्य नही हो सकता। जैसे घट बनाना यह कार्य है और इसलिये मिट्टी, कुम्हार, चाक, (चक्र) आदि कारण अवश्य चाहिये । अतः कारण मुख्य है। ___ निश्चय व्यवहार-- निश्चय को प्रगट कराने वाला व्यवहार है। व्यवहार बलवान है, व्यवहार से ही निश्चय तक पहुँच सकते है । जैसे निश्चय मे कर्म का कर्ता कर्म है। व्यवहार से जीव कर्मों का
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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