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________________ प्रमाण नय ५४३ जो नय से ही एकान्त पक्ष ग्रहण करे उसे नयाभास (मिथ्यात्वी) कहते है। जैसे-७ अन्धो ने एक हाथी को दतुशल, सूण्ड, कान, पेट, पॉव, पूछ और कुम्भस्थल माना वे कहने लगे कि हाथी मूसल समान, हडूमान समान, सूप समान, कोठी समान, स्तम्भ समान, चामर समान तथा घट समान है। समदृष्टि तो सब को एकातवादी समझकर मिथ्या मानेगा, परन्तु सर्व नयो को मिलाने पर सत्य स्वरूप बनता है। अत वही समदृष्टि कहलाता है। __निक्षेप चार-एकेक वस्तु के जैसे अनन्त नय हो सकते है, वैसे ही निक्षप भी अनन्त हो सकते है, परन्तु यहां मुख्य चार निक्षेप कहे जाते है । निक्षेप सामान्य रूप प्रत्यक्ष ज्ञान है। वस्तु तत्व ग्रहण मे अति आवश्यक है। इसके चार भेद . नाम निक्षेप : जीव व अजीव का अर्थ शून्य, यथार्थ तथा अयथाथ नाम रखना। स्थापना निक्षेप . जीव व अजीव की सदृश (सद्भाव तथा असदृश ( अदृश भाव ) स्थापना ( आकृति व रूप ) करना सो स्थापना निक्षेप। द्रव्य निक्षेप भूत और वर्तमान काल की दशा को वर्तमान मे भाव शून्य होते हुए कहना व मानना । जैसे युवराज तथा पद-भ्रष्ट राजा को राजा मानना, किसीके कलेवर (लाश) को उसके नाम से जानना। भाव निक्षेप . सम्पूर्ण गुणयुक्त वस्तु को हो वस्तु रूप से मानना। दृष्टान्त -महावीर नाम सो नाम निक्षेप-किसी ने अपना यह नाम रक्खा हो, महावीर लिखा हो, चित्र निकाला हो, मूर्ति होवे अथवा कोई चीज रख कर महावीर नाम से सम्बोधित करते हो तो यह महावीर का स्थापना निक्षेप केवलज्ञान होने के पहिले ससारी जीवन को तथा निर्वाण प्राप्त करने के वाद के शरीर को महावीर मानना सो महावीर का दृव्य निक्षेप और महावीर स्वय केवलज्ञान
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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