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________________ ५३० जैनागम स्तोक संग्रह ग्रह विमान के ८-८ हजार देव, नक्षत्र वि० के ४-४ हजार और तारा विमान के २-२ हजार देव वाहक है। ये समान २ सख्या मे चारों ही दिशाओ में मुंह करके पूर्व में सिह रूप से, पश्चिम में वृषभ रूप से, उत्तर में अश्व रूप से और दक्षिण में हस्ति रूप से देव रहते है। __मांडला द्वार-चद्र सूर्य आदि की प्रदक्षिणा (चारो ओर चक्कर लगाना) दक्षिणायन से उत्तरायण जाने के मार्ग को 'मांडला' कहते है। मांडले का क्षेत्र ५१० यो० का है, जिसमे ३३० यो० लवण समुद्र में और १८० यो० जम्बू द्वीप मे है । सूय के १८४ मांडलों में से ११८ लवण मे ६५ जम्बू द्वीप में है। ग्रह के ८ मांडलो मे से ६ लवण मे और और २ जम्बूद्वीप मे है । जम्बू द्वीप मे ज्योतिषी के माडले है वे निषिध और नीलवंत पर्वत के ऊपर है। चन्द्र के मांडलो का अन्तर ३५३ योजन का है । सूर्य के प्रत्येक मडल से दूसरे मडल का अन्तर योजन का है। गति द्वार-सूर्य की गति कर्क संक्रांति को (आषाढी पूर्णिमा) १ मुहूर्त मे ५२५१३६ क्षेत्र तथा मकर सक्रांति (पौष पूर्णिमा) को १ मुहूर्त में ५३०५ ६१ मे क्षेत्र है । चन्द्र की गति कर्क सक्रांति को १ मु० मे ५०७३१७५५- और मकर सक्रांतिको ५१२५५ है। ताप क्षेत्र-कर्क सक्राति को ताप क्षेत्र ९७५२६२६ और उगता सूर्य ४७२०३३१ योजन दूर से दृष्टिगोचर होता है। मकर सक्राति को ताप क्षेत्र ६३६६३१६ उगता सूर्य ३१८३१३६ योजन दूर से दृष्टिगोचर होता है। ___अन्तर द्वार-अन्तर दो प्रकार का पड़े । १ व्याघात-किसी पदार्थ का बीच मे आ जाने से और २ निर्व्याघात-बिना किसी के वीच मे आये । व्याघात अपेक्षा ज० २६६ योजन का अन्तर कारण निषिध नीलवन्त पर्वत काशिखर २५० यो० है और यहां से ८-८ योजन दूर ज्यो० चलते है अर्थात् २५०+८+८= २६६ उ० २२४२ योजन कारण-मेरु शिखर १० हजार यो० का है और इससे १२२१ यो० दूर
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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