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________________ ५१८ जैनागम स्तोक सग्रह __ करण्ड द्वार : पहली नरक में ३ करण्ड हैं :-(१) खरकरण्ड १६ जात का रत्नमय १६ हजार योजन का, (२) आयुल बहुल पानी ( जल ) मय ८० हजार योजन का, (३) पङ्क बहुल कर्दम मय ८४ हजार योजन का । कुल १८०००० योजन है। शेष ६ नरको मे करण्ड नही है। पाथड़ा, आन्तरा द्वार : पृथ्वी पिण्ड में से १००० योजन ऊपर और १००० योजन नीचे छोड कर शेष पोलार में आन्तरा और पाथड़ा है। केवल सातवी नरक में ५२५०० योजन नीचे छोड़ कर ३००० योजन का एक पाथडा है। पहली नरक मे १३ पाथड़ा १२ आन्तरा है। दूसरी , ११ ॥ १० ॥ तीसरी , चौथी , पांचवी , ५ ॥ छट्ठी ॥ ३ ॥ पहली नरक के १२ आन्तरा में से २ ऊपर के छोड कर शेष १० आन्तराओ में दश जाति के भवनपति रहते है। शेष नरकों मे भवनपति देवताओ के वास नही है । प्रत्येक पाथड़ा ३००० योजन का है, जिसमे १०००० योजन ऊपर, १००० योजन नीचे छोड़ कर मध्य के १००० योजन के अन्दर नेरिये उत्पन्न होने की कुम्भिये है। एकेक पाथडेका अन्तर . पहली नरक में ११५८३१ योजन दूसरी में ९७०० योजन, तीसरी में १२७५० योजन, चौथी में १६१६६३ यो०, पाँचवी में २५२५० योजन, छटी में ५२५०० योजन का अन्तर है। सातवी में एक ही पाथडा है। __ घनोदधि द्वार : प्रत्येक नरक के नीचे २० हजार योजन का घनोदधि है। ran tar
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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