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________________ ५१६ जैनागम स्तोक सग्रह समभूमि से १॥ राजु ऊँचा १-२ देवलोक है, यहा से १ राजु ऊँचा तीसरा-चौथा देवलोक है, यहां से ०॥ राजु ऊँचा ब्रह्म देवलोक है, ०। राजु ऊँचा लॉतक देवलोक, यहाँ से ०। राजु ऊँचा सातवाँ देवलोक, ०। राजु ऊ चा आठवाँ देव०, ॥ राजु ऊंचा ६-१० वाँ देवलोक, || राजु ऊँचा ११-१२ देवलोक, १ राजु ऊंचा नव वेयक १ राजु ऊंचा ५ अनुत्तर विमान आते है। इनका क्रमशः बढता घटता विस्तार यन्त्रानुसार है : स्थान जाड़ा विस्तार घनराज परतरराज सूचिराज खंडराज सम भूमिसे ॥ १ ॥ २ यहां से ॥ १॥ १६ ४ १८ ७२ " ० २ १ ४ १६ ६४ १-२ देव० से०॥ २॥ शाह ६॥ २५ १०० यहां से ॥ २८८ ३-४ देव० से० ०॥ ५ वा , । ५ १८।। ७५ ३०० १२०० ६ ट्ठा , ०। ५ ६ २५ १०० ७ वां , ० ४ ४ १६६४ २५६ ८ वां , । ४ ४ १६ ६४ ९-१० , ०॥ ३ ॥ १६ ७२ २८८ ११-१२, ०॥ २०० यहां से ,, ०। २॥ १॥ ६॥ २५ १०० नव ग्रेवेयक ० २ ३ १२ ४८ यहां से ॥ १॥ १६ ॥ १८ ७२ ५ अनु. वि. ०॥ १ ॥ २ ८ ३२ __ कुल उर्ध्व लोक के ६३।। घन राज हुए और समस्त लोक के २३६ घनराज हुए। ५१२ ४०० २५६ . १६२
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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