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________________ जैनागम स्तोक संग्रह १२ काल द्वार – सामा० अवसर्पिणी काल के ३-४-५ आरा में जन्मे और ३-४-५ आरा में विचरे, उत्स० के २-३-४ आरा मे जन्में और ३-४ आरा में विचरे, महाविदेह मे भी होवे । संहरण अपेक्षा अन्य क्षेत्र (३० अकर्म भूमि) में भी होवे । छेदो० महाविदेह मे नही होवे, शेष ऊपरवत् । परि० अवस० काल के ३-४ आरा में जन्मे, प्रवर्ते, उत्स० काल के २-३-४ आरा में जन्मे और ३-४ आरा में प्रवर्ते सूक्ष्म ० • यथा० संयति अवस० ३-४ आरा में जन्मे और प्रवर्ते । उत्स० काल के २-३-४ आरा में प्रवर्ते । महाविदेह में भी पावे, सहरण अन्यत्र भी होवे । १३ गति द्वार ४८८ गति स्थिति जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट सं० नाम सामा० छेदो० सौधर्म कल्प अनुत्तर विमान २ पल्य ३३ सागर परिहार विशुद्ध सौधर्म कल्प सहस्रार विमान २ पल्य १८ सागर सूक्ष्म संपराय अनु० विमान अनुत्तर विमान ३१ सागर ३३ सागर यथाख्यात अनु. विमान अनुत्तर विमान ३१ सागर ३३ सागर देवता में ५ पदवी है . इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिशक, लोकपाल और अहमेन्द्र | सामा० छेदो० आराधक होवे तो पाँच मे से १ पदवी पावे । सूक्ष्म. यथा॰ वाले अहमेन्द्र पद पावे । ज० विराधक होवे तो ४ प्रकार के देवो मे उपजे, उ० विराधक होवे तो ससार भ्रमण करे । १४ सयम स्थान - सामा० छेदो० परि० मे असं० संस्थान होवे | सूक्ष्म मे अं० मु० के जितने असख्य और यथा० का सं० स्थान एक ही है | इनका अल्पबहुत्व | सव से कम यथा० संयति के संयम स्थान उनसे सूक्ष्म सम्पराय के सं० स्थान असख्यात गुणा उनसे परिहार वि० के सं० स्थान असंख्यात गुणा उनसे सामा० छेदो के सं० स्थान परस्पर तुल्य १५ निकासे द्वार - एकेक संयम के पर्यव (पर्जवा ) अनन्ता अनन्त
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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