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________________ समुद्घात पद ४७१ जीव ने म० रूप से आहारिक समु० जो करी होवे तो १, २, ३ और भ० मे जो करे तो १ २, ३, ४ बार करेगे। केवली समु० मनुष्य सिवाय २३ दडक के जीवो ने अपने तथा अन्य २३ दडक रूप से भूत काल मे नही करी और न भ० में करेगे। मनु० रूप से भूतकाल मे नही की और भ० में करे तो १ बार करेगे। एकेक मनु० २३ दंडक रूप से केवली समु० करी नही और करेगे भी नही । एकेक मनु० मनु० रूप से केवली समु० करी होवे तो १ बार और करेगे तो भी १ बार। ६ अनेक जीव परस्पर --अनेक नेरियो ने नेरिये रूप से वेदनीय __समु० भूत मे अनती करी, भवि० मे अनती करेगे एव २४ दडको का समझना । शेष २३ दडक मे भी नारकी वत् । वेदनी के समान ही कषाय मारणातिक वैक्रिय और तैजस समु० का समझना, परन्तु वैक्रिय सभु० १७ दंडक मे और तैजस समु० १५ दडक मे कहनी। ___ अनेक नेरिये २३ दडक (मनुष्य सिवाय) रूप से आहा० समु० न की न करेगे। मनु० रूप से भूतकाल मे असं० की. भ० मे अस० करेगे एवं २३ दण्डक ( वनस्पति सिवाय ) रूप से भी समझना। वनस्पति मे अनती कहनी। एकेक मनुष्य २३ द० रूप से आहा० समु० की नही व करेगे भी नही। मनुष्य रूप से भूतकाल मे स्यात् सख्याती, स्यात् अस० की और भवि० मे करे तो स्यात् सख्याती, स्यात् अस० करेगे। अनेक नरकादि २३ दण्डक के जीवो ने अनेक नरकादि २३ दण्डक रूप से केवली समु० की नही और करेगे भी नही । मनुष्य रूप से की नही, जो करे तो सख्या० अस० करेगे।। ___ अनेक मनुष्यो ने २३ दण्डक रूप से केवली समु० की नही और करेगे भी नही। मनुष्य रूप से की होवे तो स्यात् सख्या० की। भविष्य मे करे तो स्यात् सख्याती स्यात् अस० करेगे।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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