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________________ वेदना पद ४६७ ( ४ ) वेदना तीन प्रकार की-शाता, अशाता और शाताअशाता । समच्चय जीव और २४ दण्डक मे तीनो ही वेदना होती है। (५) वेदना तीन प्रकार की-सुख, दुख और सुख-दुख । समुच्चय और २४ दण्डक मे तीन ही प्रकार की वेदना वेदी जाती है। ( ६ ) वेदना दो प्रकार की उदीरणा जन्य (लाच, तपश्चर्यादि से ; २ उदय जन्य ( कर्मोदय से )। तिर्यञ्च पचेन्द्रिय ओर मनुष्य मे दोनो ही प्रकार की वेदना। शेष २२ दण्डक मे उदय (औपक्रमीय) वेदना होवे। (७) वेदना दो प्रकार की-निन्दा व अनिन्दा । नारको, १० भवनपति और व्यन्तर व १२ दण्डक मे २ वेदना । सज्ञी निन्दा वेदे, असज्ञी अनिन्दा वेदे। ( सज्ञी, असज्ञी मनुष्य तियञ्च मे से मर कर गये इस अपेक्षा समझना)। पाँच स्थावर, ३ विकलेन्द्रिय अनिन्दा वेदना वेदे ( असज्ञो होने से ) । तिर्यञ्च पचे और मनुष्य मे दोनो प्रकार की वेदना, ज्योतिषी और वैमानिक मे दोनो प्रकार की वेदना । कारण कि दो प्रकार के देवता है। १ अमायी सम्यक् दृष्टि-निन्दा वेदना वेदते है। २. मायी मिथ्या दृष्टि-अनिन्दा वेदना वेदते है।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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