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________________ षद्रव्य पर ३१ द्वार ४५५ ५ काल द्रव्य में ४ गुण-अरूपी, अचेतन, अक्रिय, वर्तना गुण ६ पुद्गलास्ति मे, रूपी, अचेतन, सक्रिय, जीर्णगलन १३ पर्याय द्वार :-प्रत्येक द्रव्य की चार २ पर्याय है। १ धर्मास्ति० की ४ पर्याय-स्कध, देश, प्रदेश, अगुरु लघु २ अधर्मास्ति० की ४ , " " " ३ आकाशास्ति की ४ , , ४ जीवास्ति० की ४ , अव्यावाध, अनावगाड, अमूर्त, , ५ पुद्गलास्ति० की ४ ,, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श ६ काल द्रव्य० की ४ , भूत, भविष्य, वर्तमान, अगुरु लघु १४ साधारण द्वार .-साधारण धर्म जो अन्य द्रव्य मे भी पावे । जैसे धर्मास्ति० मे अगुरु लघ, असाधारण धर्म जो अन्य द्रव्य मे न पावे । जैसे धर्मास्तिकाय में चलन सहाय इत्यादि । १५ साधर्मी द्वार :-षद्रव्यो में प्रति समय उत्पाद-व्यय है, क्योंकि अगुरु लघु पर्याय में षट् गुण हानि वृद्धि होती है । सो यह छ. ही द्रव्यो मे समान है। १६ परिणामी द्वार :-निश्चय नय से छ ही द्रव्य अपने २ गुणो में परिणमते है । व्यवहार से जीव और पुद्गल अन्यान्य स्वभाव में परिणमते है । जिस प्रकार जीव मनुष्यादि रूप से और पुद्गल दो प्रदेशी यावत् अनन्त प्रदेशी स्कंध रूप से परिणमता है। १७ जीव द्वार -जीवास्ति काय जीव है। शेप ५ द्रव्य अजीव है। १८ मूर्ति द्वार -पुद्गल रूपी है । शेष अरूपी है, कर्म के साथ जीव भी रूपी है। १६ प्रदेश द्वार -५ द्रव्य सप्रदेशी है। काल द्रव्य अप्रदेशी है। धर्म-अधर्म अस० प्रदेशी है। आकाश (लोकालोक अपेक्षा) अनन्त प्रदेशी है । एकेक जीव अस० प्रदेशी है। अनन्त जीवो के अनन्त प्रदेश है। पुद्गल परमाणु १ प्रदेशी है। परन्तु पुद्गल द्रव्य अनन्त प्रदेशी है ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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