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________________ षद्रव्य पर ३१ द्वार ४ द्रव्य द्वार गुण पर्याय के समूह युक्त होवे उसे द्रव्य कहते है । हरेक द्रव्य के मूल ६ स्वभाव है । अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, सत्तत्व, अगुरुलघुत्व, उत्तर स्वभाव अनन्त है। यथा नास्तित्व नित्य, अनित्य, एक, अनेक, भेद, अभेद, भव्य, अभव्य, भक्तव्य परम इत्यादि धर्म, अधर्म, आकाश एक-एक द्रव्य है। जीव पुद्गल और काल अनन्त है। ५ क्षेत्र द्वार धर्म, अधर्म, जीव और पुद्गल लोक व्यापक है। आकाश लोकालोक व्यापक है और काल २॥ द्वीप मे प्रवर्तन रूप है और उत्पाद-व्यय रूप से लोकालोक व्यापक है। ६ काल द्वार . धर्म, अधर्म आकाश द्रव्यापेक्षा अनादि अनन्त है। क्रियापेक्षा सादि सात है। पुद्गल द्रव्यापेक्षा अनादि अनन्त है। प्रदेशापेक्षा सादि सात है। काल द्रव्य द्रव्यापेक्षा अनादि अनत समयापेक्षा सादि सात है। ७ भाव द्वार : पुद्गल रूपी है। शेष ५ द्रव्य अरूपी है। ८ सामान्य-विशेष द्वार · सामान्य से विशेष बलवान है। जैसे सामान्यत द्रव्य एक है। विशेषत. ६-६ धर्मास्तिकाय का सामान्य गुण चलन सहाय है । अधर्मा० का स्थिर सहाय, आका० का अवगाहदान, काल का वर्तना, जीव० का चैतन्य, पुद्गल का जीर्ण-गलनविध्वसन गुण और विशेष गुण और विशेष गुण छ ही द्रव्यो का अनत-अनत है। ६ निश्चय व्यवहार द्वार निश्चय से समस्त द्रव्य अपने २ गुणों मे प्रवृत होते है । व्यवहार मे अन्य द्रव्यो की अपने गुण से सहायता देते है । जैसे-लोकाकाश मे रहने वाले समस्त द्रव्य आकाश अवगाहन मे सहायक होते है, परन्तु अलोक मे अन्य द्रव्य नही । अत . अवगाहन मे सहायक नही होते । प्रत्युत् अवगाहन मे षट्गुण हानि वृद्धि सदा होती रहती है । इसी प्रकार सब द्रव्यो के विषय में जानना।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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